DM का आदेश बना विवादित मुद्दा: पश्चिम बंगाल के कारीगरों को संदिग्ध ठहराने पर संवैधानिक सवाल।

DM का आदेश बना विवादित मुद्दा: पश्चिम बंगाल के कारीगरों को संदिग्ध ठहराने पर संवैधानिक सवाल।

News Right। रतलाम के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा हाल ही में पारित एक आदेश ने संवैधानिक विवाद को जन्म दे दिया है। इस आदेश में पश्चिम बंगाल से आए कारीगरों को संदिग्ध गतिविधियों से जोड़ते हुए मकान मालिकों और आभूषण व्यापारियों को निर्देशित किया गया है कि वे ऐसे कारीगरों की जानकारी अनिवार्य रूप से संबंधित थानों को दें।

हालांकि, कानून में जानकारों के अनुसार इस आदेश को न केवल पूर्वग्रहपूर्ण बताया है, बल्कि इसे संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों का स्पष्ट उल्लंघन भी माना है।

कानून के जानकारों के अनुसार, यह आदेश निम्नलिखित संवैधानिक अधिकारों का सीधा उल्लंघन करता है:

1. अनुच्छेद 14 – कानून के समक्ष समानता, जो बिना तर्कसंगत आधार के किसी व्यक्ति या समूह के साथ भेदभाव को निषिद्ध करता है।  

2. अनुच्छेद 15 – जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है।  

3. अनुच्छेद 19(1)(d) – भारत के किसी भी भाग में स्वतंत्रतापूर्वक आने-जाने का अधिकार।  

4. अनुच्छेद 19(1)(e) – भारत के किसी भी भाग में निवास करने और बसने का अधिकार। 

 

5. अनुच्छेद 19(1)(g) – कोई भी नागरिक किसी भी व्यवसाय, व्यापार या पेशा अपनाने का अधिकार रखता है*।  

6. अनुच्छेद 21 – जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार, जिसमें गरिमा के साथ जीवन जीना सम्मिलित है।  

यह मामला न केवल प्रशासनिक निर्णय की संवेदनशीलता पर सवाल उठाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि किसी भी आदेश को पारित करते समय संवैधानिक मूल्यों और नागरिक अधिकारों की रक्षा कितनी महत्वपूर्ण है।

कानून के जानकारों का सुझाव:

कानून के जानकारों द्वारा यह स्पष्ट किया गया कि किसी एक व्यक्ति या समूह विशेष को लक्षित करने के स्थान पर, समस्त किरायेदारों का विस्तृत ब्यौरा (नाम, पता, पहचान प्रमाण आदि) संबंधित थाना को उपलब्ध कराने हेतु एक सामान्य आदेश जारी किया जाना चाहिए था। यह प्रक्रिया पारदर्शिता बनाए रखते हुए कानून-व्यवस्था के उद्देश्य से अधिक प्रभावी होती, क्योंकि इससे न केवल व्यक्तिगत पूर्वाग्रह की संभावना समाप्त होती, बल्कि थाना स्तर पर एक केंद्रीकृत डेटाबेस तैयार करने में भी सहायता मिलती।